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Friday, May 08, 2015

कर्ण की दानवीरता ! दानवीर कर्ण श्री मूल माहूँनाग जी के नाम से सुप्रसिद्ध है !

Mull Mahunag Temple karsog Hindi safe tricks by Dinesh Thakur

महाभारत के युद्ध का सत्रहवां दिन समाप्त हो गया था !
महारथी कर्ण रणभूमि में गिर चुके थे और मरणासन पर पड़े थे !
पांडव - शिविर में आन्दोत्सव हो रहा था !
ऐसे उल्लास के समय श्रीकृष्ण खिन्न थे !
वे बार - बार कर्ण की प्रशंसा कर रहे थे " आज पृथ्वी से सच्चा दानी जा रहा है _ दानशीलता का सूर्यास्त हो रहा है !

परन्तु अर्जुन को संदेह हुआ और बोले - हे केशव ' कर्ण में ऐसी कौन सी महानता है तथा धर्मराज युधिष्ठिर की दानशीलता में कौन सी कमी रह गयी है , जो आप धर्मराज के समक्ष कर्ण की इतनी प्रशंसा कर रहे हो ? '
श्रीकृष्ण बोले - " पार्थ ! तुम्हे विश्वास नहीं हो रहा , तो आओ चलो मेरे साथ !
रात्री हो चुकी थी ! श्रीकृष्ण ने अर्जुन की सन्देह निवृति हेतु अर्जुन को कुछ दूर छोड़ दिया और स्वयं ब्राहमण का वेश बनाकर अर्जुन से बोले ' हे अर्जुन मरणासन पड़े उस महाप्राण कर्ण के दर्शन कर आते हैं परन्तु तुम दूर से ही देखते रहना !'
श्रीकृष्ण रक्त रंजित कीचड़ से लथपथ शवों में लिपटी भूमि में पहुंचे जहाँ कर्ण गिरे पड़े थे !
श्रीकृष्ण ने ब्राहमण वेश बनाकर पुकारना प्रारंभ किया , ' दानी कर्ण कहाँ है ? '
" मुझे कौन पुकारता है ? कौन है भाई ! " बड़े कष्ट से भूमि पर मूर्छित प्राय पड़े कर्ण ने मस्तक उठाकर कहा !
ब्राहमण कर्ण के पास आ गए ! उन्होंने कहा , '' हे महादानी कर्ण मैं बड़ी आशा से तुम्हारा नाम सुनकर तुम्हारे पास आया हूँ , मुझे थोडा सा स्वर्ण चाहिए - बहुत थोडा - सा दो सरसों जितना !''
कर्ण ने कुछ सोचा और बोले , " मेरे दांतों में स्वर्ण लगा है आप कृपा करके निकाल लें !"
ब्राहमण ने घृणा से मुख सिकोडा और बोले " तुम्हे लज्जा नहीं आती एक ब्राहमण से यह कहते कि जीवित मनुष्य के दांत तोड़े !"
ब्राहमण नाराज हो जाते हैं ! रूठे ब्राहमण को देखकर कर्ण ने सामने पड़े अस्त्र पर मुंह पटका व कष्ट की परवाह किये बिना सोने का दांत दान देने लगे ! ब्राहमण ने जूठा दांत लेने से मना किया ! तब कर्ण ने घायल हाथों से वरुणास्त्र प्रयोग कर जल निकाला , और दांत धोकर दान किया !
श्रीकृष्ण प्रकट हुये - कर्ण ने प्रभु चरणों पर प्राण त्यागे ! पार्थ की शंका शांत हुयी !!!

मित्रों आज भी दानवीर कर्ण श्री मूल माहूँनाग जी के नाम से सुप्रसिद्ध है ! और इनका ये मंदिर करसोग से 30 KM और शिमला से 105 KM की दुरी पर माहूँनाग ( बखरी ) , करसोग , हिमाचल प्रदेश में स्थित है !
ऐसा मन जाता है कि इस मंदिर कि स्थापना 1664 में राजा श्याम सेन ने की थी ! अगर श्रद्धालुओं की माने तो कहा जाता है की आज भी इस मंदिर में जो सचे मन से आता है उस की हर मनोकामना पूरी होती है ! अगर आप को और अधिक इस मंदिर के बारे में जानना हो तो कमेन्ट के माध्यम से बताये या आप गूगल में भी सर्च कर के जान सकते है !





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